असद जैदी, आकार शब्द को नकारते हैं, इसीलिए वो सीमात्मक घेरों में आलोचकों द्बारा अक्सर लेकर आए जाते हैं। समस्या यही है, कि हम हर वक्त मूल्यांकन को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, और इस आदत के कारण और अपनी विद्वानता साबित करने कि जिद में बहुत सी बातें हम से बुराई ले लेती हैं, कभी कभी या अक्सर कमी उन बातों में ही होती हैं, और अपने बुद्धिमानी को बघारने के लिए उसे ग़लत साबित कर देते हैं। असद भी इस षडयंत्र में फँस चुके हैं, मगर मेरे हिसाब से असद जीवन और कविता में भी असद ही हैं, और उनकी कविता भी उनके जीवन की तरह ही है..इसे पढ़कर ख़ुद सोचिये..
नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ
आदमी और कबूतर ने एक दूसरे को नहीं देखा
औरतों ने शून्य को नहीं देखा
कोई द्रव यहाँ बहा नहीं...
नहीं कोई बच्चा यहाँ
सरकंडे की तलवार लेकर
मुर्गी के पीछे नहीं भागा
बंदरों के काफिलों ने कमान मुख्यालय पर डेरा नहीं डाला
मैंने सारे लालच सारे शोर के बावजूद केबल कनेक्शन
नहीं लगवाया
चचा के मिसरों को दोहराना नहीं भूला
नहीं बहुत सी प्रजातियों को मैंने नहीं जाना जो सुनना न चाहा
सुना नहीं,
गोया बहुत कुछ मेरे लिए नापैद था
नहीं पहिया कभी टेढा नहीं हुआ
नहीं बराबरी की बात कभी हुयी ही नहीं
{हो सकती भी न थी }
उर्दू कोई ज़बान ही न थी
अमीर खानी कोई चाल ही न थी
मीर बाक़ी ने बनवाई जो
कोई वह मस्जिद ही न थी
नहीं तुम्हारी आंखों में
कभी कोई फरेब ही न था
निशांत कौशिक.
2 comments:
Asad zaidi ki behtreen kavita hai,,ye paristithi ke sarokar se bhagne ka halafnaama hi hai..aapka kavita pathan ewam chayan bahut acche hain,bahut accha.. badhiya....
Avinash sharma
Wishing "Happy Icecream Day"...See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
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