शुक्रवार, 12 मार्च 2010

येहूदा आमिखाई की कविताएं


येहूदा आमिखाई समकालीन हिब्रू कविता के सबसे बड़ी कवि हैं, हिब्रू साहित्य के बहुत से आयाम हैं, जो एतिहासिक,धार्मिक और समकालीन परिस्थिति को साथ में लेकर बने हैं इसके बावजूद आमिखाई की कविता में इन सबका एक विश्लेषणात्मक और सुलझा हुआ स्वरूप मिलता है जो आमिखाई की कविता में एक स्पष्ट धारा बनकर चलता रहता है
आमिखाई का जन्म १९२४ में जर्मनी में हुआ था, "विस्थापन" जैसी दुरुहता के विपरीत चलने वाली परिस्थितियों ने आमिखाई और उसकी कविता को निखारा अपनी पहली कविता संग्रह के प्रभाव से ही वो विश्व कविता में महत्वपूर्ण स्थान पा गए संवाद प्रकाशन से प्रकाशित येहूदा आमिखाई का कविता संग्रह "धरती जानती है" नज़रों से गुज़रा, और उसकी पहली कविता ने ही मुझे बहुत आकर्षित किया, इस कविता को में सबसे पहले सामने रखूँगा अनुवादक अशोक पाण्डेय (नैनीताल) ने आमिखाई के प्रति एक स्पष्ट बयान दिया है, जो बाकी सब बातों से महत्वपूर्ण है

"भारतीय सन्दर्भ में देखें तो धर्म और धार्मिक संस्कारों के बारे में कविता लिखना शायद संभव नहीं, क्योंकि इसमें सांप्रदायिक करार दिए जाने का जोखिम तो है ही साथ ही यह भी कि सांप्रदायिक शक्तियां उस कवि को अपनी ढाल बनाना चाहें येहूदा की कविता अपनी संस्कृति और धर्म के स्तर पर इस तिलिस्म को भी तोडती हैं वे बार-बार बाइबिल-कथाओं, चरित्रों और घटनाओं का उल्लेख करते हैं कई बार तो बाइबिल की पंक्तियों के लम्बे उद्धरण भी प्रस्तुत करते हैं और यह सब कुछ कविता में करना थोडा अजीब लग सकता है सबसे ख़ास बात यह है कि येहूदा अपने समाज में कुछ कह पाने के लिए इन बातों के महत्त्व को अच्छी तरह जानते हैं और उनका इस्तेमाल अपने ढंग से करते यही वजह है कि वे अवसर मिलने पर "मैं बाइबिल को गड़बड़ा देना चाहता हूँ" जैसी कविता लिखने से भी नहीं चूकते"

येहूदा की मृत्यु २००० में इजराइल में हुई

कविताएं प्रस्तुत हैं :


~~~~~

तीस सेंटीमीटर था बम का व्यास
और इसका प्रभाव पड़ता था सात मीटर तक
चार लोग मारे गए, ग्यारह घायल हुए
इनके चारों तरफ एक और बड़ा घेरा है -- दर्द और समय का
दो हस्पताल और एक कब्रिस्तान तबाह हुए
लेकिन वह जवान औरत जो दफनाई गई शहर में
वह रहने वाली थी सौ किलोमीटर से आगे कहीं की
वह बना देती है घेरे को और भी बड़ा
और वह अकेला शख्स जो समुन्दर पास किसी देश के सुदूर किनारों पर
उसकी मृत्यु का शोक कर रहा था --
समूचे संसार को ले लेता है इस घेरे में

और मैं अनाथ बच्चों के उस रुदन का ज़िक्र तक नहीं करूँगा
जो पहुँचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक
और उससे भी आगे
जो एक
घेरा बनाता है
बिना अंत और बिना ईश्वर का


~~~~
हम दोनों के साथ घटी बाइबिल की सारी गाथाएं
और चमत्कार
हम जब साथ थे

ईश्वर की शांत ढलान पर
हम कुछ देर कर सके आराम

गर्भ की हवा चली हमारे लिए हर जगह
हमारे पास समय था हमेशा।

~~~~

मुझे एक ऐसी धरती दिखाओ
जहाँ की औरतें
वहां के पोस्टरों पर बनी औरतों से ज्यादा खुबसूरत हों
और जिनका ईश्वर लगाता हो
मेरी आँखों के गिर्द, मेरे माथे पर और मेरी दुखती गर्दन पर
अच्छे अच्छे लेप

'फिर कभी नहीं पाउँगा अपनी आत्मा के लिए आराम'
हर दिन
एक नया आखिरी दिन
गुज़र जाता है और मैं ज़रूर लौटता हूँ
उन जगहों पर जहाँ वे मुझे नापते हैं
तब तब बढ़ चुके पेड़ों से और उस सबसे जो नष्ट हो चुका

मैं अपने पैर पटकता हूँ और घसीटता हूँ
अपने जूते
चढ़ पाने के लिए उस उस सब पर
जो मुझे पहले ही नीचे धकेल चुका है
मेरी आत्मा का गोबर
भावनाओं की धूल
और प्रेम की रेत

'
फिर कभी नहीं पाऊंगा अपने अपनी आत्मा के लिए आराम'
मुझे बैठा जाने दो एक पियानोवादक
या एक नाई की घुमने वाली कुर्सी पर
और मैं घूमता जाऊं गोल गोल
आराम से आखीर तक....

~~~~

मेरे पिता ने युद्धों में बिताए चार वर्ष
और अपने शत्रुओं से घृणा नहीं की, प्यार भी नहीं किया
और तब मैं भी जानता हूँ कि किसी तरह वहां भी
वे मेरे निर्माण में लगे हुए थे, अपनी शान्तियों में से
जो इतनी विरल और बिखरी हुई थीं, जिन्हें उन्हों ने
बम-विस्फोटों और धुंए के बावजूद चमके रखा
और अपनी माँ के दिए हुए कड़े होते केक के बीच, उन्हें
अपने झोले में रख लिया
और अपनी आँखों में उन्होंने रख लिया
बेनाम मृतकों को
उन्हों ने सम्हाल लिया उनको, ताकि किसी दिन
उनकी दृष्टि से मैं उन्हें देख सकूँ और प्यार कर सकूँ --ताकि मैं
भय से भर जाऊं जैसे वे सारे मर गए...
उन्होंने अपनी आँखों को उनसे भर लिया, लेकिन तब भी वह बेकार रहा
अपने सारे युद्धों में चाहकर भी मुझे जाना ही होगा

~~~~

एक औरत
जो मेरी माँ की
तरह लगती है
देखती है
एक आदमी को जो लगता है
मेरी तरह

गलतियाँ भी अद्भुत होती हैं और आसान
बालकनी में गाती हुई लड़कियां
टांगती हैं
अपने कपड़ों को बहार सूखने के लिए
--वे पताकाएं प्रेम की

धागों के कारखाने में
वे बनाते हैं रस्सियाँ महीन धागों को बटकर
जीवन के पुलिंदे में
आत्माओं को बंधने के वास्ते

दोपहर की बहती हवा
मानो पूछती हैं कि 'तुमने क्या किया
किस बारे में तुम बात करते थे'

पुराने पथरीले घरों में जवान औरतें अब दिन-दहाड़े करती हैं
वह सभी कुछ
जिसे उनकी माओं की माएं रातों में करने का ख्वाब देखती थीं
वह आर्मेनियाई चर्च खाली है
और बंद
किसी परित्यक्त औरत की तरह
उधर महिला सुधार-गृह में
लडकियां गाती हैं
-- 'अपनी महान दयालुता में
ईश्वर लाएगा मृतकों को जीवन में वापस'
और अपने सूखे कपडे तहाती हैं

~~~~

उस दिन जब मैं गया
वसंत जैसे फट पड़ा अँधेरे के बारे में कही गई कहावतों को
सही साबित करने के लिए

रात हमने साथ खाना खाया
उन्होंने शोभा, पवित्रता और स्वच्छता के लिए सफ़ेद मेजपोश बिछाया
मोमबत्ती जलाईं क्योंकि रस्म
मोमबत्ती जलाने की

हमने खूब खाया और हम जानते थे
कि मछली की आत्मा
उसकी खोखली हड्डियों मैं होती है

एक बार फिर हम समुद्र पर खड़े थे
कोई पहले ही साफ़ कर चुका था
सारे चीज़ें
और प्रेम -- बस दो रातें
दुर्लभ डाक टिकटों की तरह ह्रदय को आघात पहुँचाने के लिए
बिना उसे तोड़े

मेरा सफ़र बहुत हल्का है
यहूदियों की प्रार्थनाओं सा
मुझे उठा लिया जाता है
जैसे उठा ली जाती है निगाह
या फिर दूसरी जगह को उड़ान भरता
कोई जहाज

~~~~

युद्ध के पहले दिनों में रचना हुई थी
हमारे शिशु की
उस भीषण रेगिस्तान को देखने दौड़ा था मैं

फिर रात को लौटा उसे सोया हुआ देखने को
वह अभी से भूल रहा है अपनी माँ के स्तन और वह
भूलता ही जायेगा अगले युद्ध तक

और इस तरह जब वह छोटा ही था
उसकी आशाएं बंद हो गईं और खुल गया शिकायतों का उसका पुलिंदा
कभी बंद होने का

~~~~

दूसरे देश में
प्रेम करना चाहिए हमेशा उस लड़की से
जो इतिहास की छात्रा हो
इन पहाड़ों की तलहटी पर
तुम्हें लेटना चाहिए उसके साथ इस घास पर
और सिसकारियों और आहों के बीच
वह तुम्हें बताएगी
कि पहले यहां क्या हो चुका है

'जीवन बहुत गंभीर मसला है'
मैं ने जानवरों को हँसते हुए कभी नहीं देखा

~~~~

जैसे आप पिछवाड़े बरामदे की बत्ती बुझाना भूल जाएं
ऐसा होता है किसी को भूलना
सो वह जली रहती है अगले दिन भर

लेकिन फिर रौशनी ही आपको
दिलाती है याद

~~~~

अगर तुम अपना कोट उतारोगी
तो मुझे दूना करना होगा अपना प्यार

अगर तुम गोल, सफ़ेद हैट पहनोगी
मुझे उन्नत करना होगा अपना रक्त

जहाँ तुम प्यार करती हो
उस कमरे से सारा फर्नीचर हटाना होगा

सारे पेड़, सारे पहाड़, सारे महासागर
बहुत संकरी है दुनिया

~~~~

मेरे पास बहुत सारे मृतक हैं
हवा में दफनाए हुए
मेरे पास जीवन से वियुक्त एक माँ है
कुल मिलकर
मैं खुद जीवित हूँ अभी तक

मैं 'जगह' की तरह हूँ
लड़ता हुआ 'समय के खिलाफ'

खिड़की पर तुम्हारे चेहरे के पीछे
कभी हरा रंग बहुत खुश था
सिर्फ मेरे सपनों में मैं अभी तक करता हूँ प्रेम
पूरी ताक़त के साथ

~~~~

एक हवाई जहाज
अंजीर के पेड़ के ऊपर से गुज़रता है
वह दरअसल गुज़रता है
अपने अंजीर के नीचे खड़े आदमी के ऊपर से
मैं जहाज़ का पायलट हूँ
और अंजीर के नीचे खड़ा आदमी भी मैं हूँ
मैं बाइबिल को गड़बड़ा देना चाहता हूँ
मैं बाइबिल को बहुत ज्यादा गड़बड़ा देना चाहता हूँ

मैं पेड़ों में आस्था रखता हूँ
ऐसे नहीं
जैसे की वे रखते थे
मेरी आस्था
अल्पजीवी है -- बस अगले वसंत तक की
बस अगली सर्दियों तक की
मैं बारिश के होने और धूप के खिलने में विश्वास करता हूँ
गड़बड़ा गए हैं व्यवस्था और न्याय
अच्छे और बुरे मेरे लिए आगे पड़ी मेज़ पर रखे
नमक और काली मिर्च जैसे हैं
मैं बाइबिल को बहुत ज्यादा गड़बड़ा देना चाहता हूँ

संसार भरा हुआ है
अच्छे और बुरे ज्ञान से
वह भरा हुआ है सीखने-सिखाने के तौर तरीकों से --
पक्षी सीखते हैं बहती हुई हवाओं से

हवाई जहाज़ सीखते हैं पक्षियों से
और लोग उन सभी से सीखते हैं और भूल जाते हैं
पृथ्वी उदास है, इसीलिए नहीं कि उसमें दफ़न है मृतक
जैसे मेरी प्रेमिका की पोशाक इसीलिए खुश नहीं है कि वह रहती है
उसके भीतर
बदल हैं आदमी के बेटे
और अररात एक गहरी घाटी है
और मैं वापिस नहीं लौटना चाहता
क्योंकि सारी बुरी खबरें घर लौटती हैं
जैसे कि 'जॉब' की किताब में

होबेल ने केन ही हत्या की
और मोजेज़ ने क़दम रखे उस धरती पर जिसका वादा था
और इजराइल की संतानें छूट गईं रेगिस्तान में
मैं इज़ेकेयिल के दैवीय रथ में यात्रा करता हूँ
और इज़ेकेयिल खुद नाचता है सुखी हड्डियों की घाटी में
मिरियाम की की तरह
सोडोम और गोमोर्राह चहल-पहल भरे कस्बे हैं
और 'लाट' की पत्नी
नमक नहीं चीनी और शहद के खम्भे में तब्दील हुईं
और डेविड -- इज़राइल का राजा
जीवित है
मैं बाइबिल को गड़बड़ा देना चाहता हूँ
मैं बाइबिल को बहुत ज्यादा गड़बड़ा देना चाहता हूँ

********

निशांत कौशिक



10 comments:

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

कविताये पढ़ते पढ़ते यहाँ पे अटक गयी.शयद मेरी मर्जी की कोई चीज़ मिल गयी.

जैसे आप पिछवाड़े बरामदे की बत्ती बुझाना भूल जाएं
ऐसा होता है किसी को भूलना
सो वह जली रहती है अगले दिन भर

लेकिन फिर रौशनी ही आपको
दिलाती है याद

Amitraghat ने कहा…

"इन कविताओं को पढ़कर यही लगा कि हम भारतीय लोग कितने सुकून भरा जीवन बिताते हैं पहले भी और अभी भी...और यह भी लगा कि अनवरत युद्धों की वजह से ही धर्म को भी कविताओं में स्थान दिला दिया......"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

डॉ .अनुराग ने कहा…

कहते है कवि कई समय को एक ही समय पर एक साथ जीवित रखता है बिना किसी ममी के लेप की तरह ....ताकि सनद रहे ....इन कविताओं में कई शब्द है जिनकी अपनी आवाजे है जो कई बरसो बाद भी उसी समान्तर प्रक्रिया का एक हिस्सा मालूम पड़ती है ....जहाँ यंत्रणा किसी सामाजिक प्रक्रिया के विकास का अनिवार्य पहलु है ....जीवन एक जिजीविषा है .ओर शब्द एक औजार ....
मसलन.......

मुझे एक ऐसी धरती दिखाओ
जहाँ की औरतें
वहां के पोस्टरों पर बनी औरतों से ज्यादा खुबसूरत हों
और जिनका ईश्वर लगाता हो
मेरी आँखों के गिर्द, मेरे माथे पर और मेरी दुखती गर्दन पर
अच्छे अच्छे लेप


ताकि सनद रहे........its one of the best...

अपने झोले में रख लिया
और अपनी आँखों में उन्होंने रख लिया
बेनाम मृतकों को
उन्हों ने सम्हाल लिया उनको, ताकि किसी दिन
उनकी दृष्टि से मैं उन्हें देख सकूँ और प्यार कर सकूँ --ताकि मैं
भय से भर न जाऊं जैसे वे सारे मर गए...

ओर ये जिजीविषा का एक सीन



वह आर्मेनियाई चर्च खाली है
और बंद
किसी परित्यक्त औरत की तरह
उधर महिला सुधार-गृह में
लडकियां गाती हैं
-- 'अपनी महान दयालुता में
ईश्वर लाएगा मृतकों को जीवन में वापस'
और अपने सूखे कपडे तहाती हैं।

कवि यहाँ फिर एक आवाज है.....


मैं 'जगह' की तरह हूँ
लड़ता हुआ 'समय के खिलाफ'

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

इनका नाम सुना था..पढकर बहुत अच्छा लगा..अभी भी पढ ही रहा हू :)

Amitraghat ने कहा…

"निशांत आप अमित्रघात पर आये,आभार और धन्यवाद आपका......"
amitraghat.blogspot.com

manu ने कहा…

'जीवन बहुत गंभीर मसला है'
मैं ने जानवरों को हँसते हुए कभी नहीं देखा।


hmm...

शरद कोकास ने कहा…

कवितायें पढ़ीं । समय के ब्लॉग से होते हुए आपके ब्लॉग तक पहुंचा हूँ । इसे सब्स्क्राइब कर रहा हूँ । आप भी अपनी तबियत के व्यक्ति दिखाई देते है .. फुर्सत से बात करेंगे ।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

उफ़...कितनी खतरनाक कविताएं हैं...
बहुत दिनों बाद...ऐसी कविताएं पढने को मिली हैं...
इनसे कई बार गुजरना होगा...बार-बार...बारम्बार...

सागर ने कहा…

aur.... chahiye

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

मैं बाइबिल को गड़बड़ा देना चाहता हूँ
मैं बाइबिल को बहुत ज्यादा गड़बड़ा देना चाहता हूँ।

bas yahi bodh darshataa he ki aadami ne kaal-paristhiyo ka imaandaari se saamanaa kiya he...bahut kam hote he ese jo IMAANDAARI se jeevan ka saamna karte he..tab use kisi बाइबिल, kisi geeta, kuraan aadi ki baato se bhi bhinna duniya dikhati he jo yathaarth hoti he..saath saath chalti he.., jise bhoga jataa he..aour jiska samaapan jiska nishkarsh hamesha kisi bhi dharm pustkao se alag hi jeevan ke sammukh aata he.

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