अपने समय पर हस्तक्षेप करना, एक अधिकार होता है जो अतीत और वर्तमान के परिदृश्यों के बोध को केंद्र में रखकर निभाया जाता है. ताहम ने जिस वैचारिक आन्दोलन की भूमिका के साथ ब्लॉग जगत में प्रवेश किया था, अनिश्चितताएं, अनियमितता एवं तकनीकी समस्याएं, योजनाबद्ध तरीकों से कार्य रेखांकन में रोक बनती ही रहीं हैं. मगर कुछ प्रमाणिक बिन्दुओं को केंद्र में रखकर उसपर अधिक से अधिक वैचारिक मुबाहिसे लेखों, कविताओं पर मीमांसा का शगल भी सफल रहा है भले कुछ ही स्तर तक. और इस तरह ताहम ने आज २५ मई को अपना एक वर्ष पूरा किया.
भावी योजनाओं के अंतर्गत कुछ प्रश्न भी रखे जा सकते हैं. मुख्यतः जो आलेखों के मध्य किसी न किसी माध्यम से उपस्थित रहेंगे.
युवा लेखन में विचारधारागत लेखन की प्रतिबद्धता का टूटना और परिणामतः समकालीन साहित्य का सामाजिक सरोकार क्या हो सकता है ?, रंगमंच और मौलिकता, कहानी और उत्तर आधुनिकतावाद, सरलीकरण का दौर एवं भाषा विज्ञान. साहित्य की राजनैतिक,दार्शनिक,सामाजिक एवं नैतिक सम्बद्धता.
तथा ऐसे ही कई बिन्दुओं पर आलेख प्रस्तुत करने की योजना होगी.
_निशांत कौशिक
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"ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो
बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें
कोड़ा खाने,
यही बेहतर
अधिक दाम लेकर चुप रहना !
11 comments:
ant ka vichaar bada hi jaandaar laga...
शुभकामनाएं ! और हम इंतज़ार करेंगे
ब्रेख़्त की लाजवाब कविता का उम्दा पोस्टर...
थोड़ा सा लेखा-जोखा...और बेहतर योजनाएं...
अंत में झन्नाटेदार थप्पड़...
भई खूब...हम हैं ही...
"ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो
बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें
कोड़ा खाने, चीखने चिल्लाने से होगा
यही बेहतर
अधिक दाम लेकर चुप रहना !! "
सच कहूँ तो हम सब बिके हुए ही है अलग अलग सौदों पे ........ये पंक्तिया कई रोज तक याद रहेगी.....
ज़ुल्म अगर ज्यादा ही बढ़ गया हो
बढ़ा लेनी चाहिए अपनी कीमतें
कोड़ा खाने, चीखने चिल्लाने से होगा
यही बेहतर
अधिक दाम लेकर चुप रहना
बिकी हुई दुनिया में खुद भी बिक जाना ज़रूरी है ... नही तो कोडियों के दाम भी नही लगेंगे ...
आने वाले समय की शुभकामनाएँ ....
यार बहुत ही ज़रूरी सवाल उठाया है तुमने…
यह पोस्टर मेल कर दो प्लीज़्…और ढेरों शुभकामनायें…
बहुत ही सुंदर .......
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ताहम........