tag:blogger.com,1999:blog-2176770035485299912.post4794000359499016826..comments2022-11-19T04:46:44.946-08:00Comments on ताहम: कविता और बंदूकताहम...http://www.blogger.com/profile/12469048298677439075noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2176770035485299912.post-27090071430283607152010-01-25T09:26:27.183-08:002010-01-25T09:26:27.183-08:00sagar ji ke shabdon ke saath........sagar ji ke shabdon ke saath........सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2176770035485299912.post-13080851136984435442010-01-25T06:01:01.118-08:002010-01-25T06:01:01.118-08:00फिर भी सांस लेती है कविता बरसो तकफिर भी सांस लेती है कविता बरसो तकडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2176770035485299912.post-76923499961720329182010-01-25T00:36:12.319-08:002010-01-25T00:36:12.319-08:00बहुत दिनों बाद आये भाई,
अगर मैं गलत नहीं हूँ तो स...बहुत दिनों बाद आये भाई,<br /><br />अगर मैं गलत नहीं हूँ तो संभवतः रितेश की कविता आप पहले भी यहाँ पोस्ट कर चुके है (रंजीत के साथ मत खेला करो)... पिछले दिनों कविता पर एक लम्बी बहस एक जिद्दी धुन पर चली... जो कि एक सुखद अनुभव था... <br /><br />रितेश की, इस कविता के साथ, धूमिल का एक कथन चस्पा कर सकता हूँ, कि "एकसार्थक कविता एक सार्थक वक्तव्य होती है" , या फिर फिरदौस का ये कथन, कि" एक मुकम्मल कविता एक मुकम्मल आदमी को खाने के बाद बनती है "। कविता परिस्थितियों के अनुसार अपनी परिभाषाएं खुद रचती है, कभी कला बनती है कभी शास्त्र, कभी उदगार, कभी अभिव्यक्ति। रितेश की कविता के आरम्भ में यह स्पष्टीकरण ज़रूर है, कि " कविता में आत्मा तो होती है, मगर शायद दिल नहीं होता" , कविता के अंत के "जुमलों" को किसी रहस्यवादी धारणा के साथ जोड़ना बिलकुल नाइंसाफी है, हाँ कविता इतना स्पेस ज़रूर देती है कि आप अपनी विचारधारा विकसित करके, आत्मा, विचार,मन और दिल के बारे में अपनी समझ के साथ द्वन्द कर सकें।<br /><br />यह पंग्तियाँ दिल को छू गयीं... शुक्रिया... एहसास को शब्द देने के लिए...सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.com